14 April, 2024
gahat ki daal

पहाड़ी दाल “गहत”: स्वादिष्ट व पौष्टिकता के साथ पथरी का अचूक इलाज

खरीफ की फसल मे पैदा होने वाली गहत जाड़ो के मौसम मे खाई जाने वाली एक प्रमुख पहाड़ी दाल है। गहत फैबसी परिवार का सदस्य है, जिसका वानस्पतिक नाम मेक्रोटाइलोमा यूनीफ्लोरम है। गहत को अंग्रेजी मे हॉर्स ग्राम तथा स्थानीय लोग इसे गौथ की दाल के नाम से जानते है। भारत के अलावा नेपाल, बर्मा, भूटान, श्रीलंका, मलेशिया, वेस्टइंडीज आदि देशो मे 1000 से 2000 मीटर की ऊंचाई पर स्थानीय लोगो द्वारा गहत की दाल उगाया जाता है। वैसे तो गहत का मुख्य स्रोत अफ्रीका माना जाता है, लेकिन भारत मे इसका इतिहास बहुत पुराना है। विश्व मे गहत की कुल 240 प्रजातियो मे से 30 प्रजातिया भारत मे पायी जाती है। भारत मे सर्वाधिक (28%) गहत का उत्पादन कर्नाटक राज्य मे होता है। उत्तराखंड राज्य मे लगभग 12139 हेक्टेयर क्षेत्रफल मे गहत की खेती की जाती है।

गहत की दाल मे मौजूद पौष्टिक पोषक तत्व:

प्रति 100 ग्राम गहत की दाल मे लगभग 321 केसीएल ऊर्चा, 57 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 22 ग्राम प्रोटीन, 5 ग्राम फाइबर, 3 ग्राम मिनरल्स, 287 मिलीग्राम कैल्शियम, 7 मिलीग्राम आयरन, 3 मिलीग्राम फास्फोरस, 0.2 8 मिलीग्राम जिंक, 0.28 मिलीग्राम मैग्निशियम तथा 0.18 मिलीग्राम मैग्नीज पाया जाता है।

गहत की खेती के लिए उत्तम वातावरण:

गहत की उत्तम खेती के लिए 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान, 400 से 800 मिलीग्राम वर्षा तथा 50 से 80% आर्द्रता उपयुक्त मानी जाती है। प्रति हेक्टेयर 150 से 200 किलोग्राम गहत का उत्पादन किया जाता है। बाजार मे गहत की दाल ₹150 से ₹200 प्रति किलोग्राम की कीमत से बेचा जाता है। गहत की उत्तम प्रजातियो मे प्रताप-42, इंदिरा कुलथी-1, वी एल-गहत-8, वी एल-गहत-10 आदि प्रमुख है।

गहत की औषधीय गुण:

वैज्ञानिको के अनुसार गहत की दाल मे एंटीहाइपर ग्लाइसेमिक गुण पाए जाते है जो कि पेट की पथरी का कारगर इलाज है। गहत की दाल एक ऐसी दाल है जिसका नियमित सेवन से शरीर मे मौजूद पथरी कुछ ही दिनो मे खत्म हो सकती है। गहत मे पर्याप्त मात्रा मे एंटी ऑक्सीडेंट्स पाये जाते है, जो कि पाचन क्रिया को दुरुस्त करने मे सहायक होती है। वैज्ञानिक शोध के अनुसार गहत की दाल टाइप-2 डायबिटीज पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। गहत की दाल मे मौजूद रेजिस्टेंस स्टार्स की उपस्थिति मे यह कार्बोहाइड्रेट के पाचन को धीमा कर इंसुलिन रेजिस्टेंस को कम करके पोस्टपेऺडिअल हाइपरग्लाइसीमिया (भोजन के बाद ब्लड शुगर की अधिकता) को कम करता है। गहत का सूप फैट बर्निंग एजेंट के रूप मे कार्य करता है। इसके नियमित सेवन से मोटापे के बढ़ते स्तर को नियंत्रित किया जा सकता है। गहत की दाल मे प्लेवोनाॅयड तत्व भी पाया जाता है जो कि एंटी डायरिया तथा एंटी अल्सर के रूप मे कार्य करता है। गहत की दाल मे प्रचुर मात्रा मे फाइटिक एसिड तथा फिनोलिक एसिड पाया जाता है जिसका प्रयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति मे सर्दी, खांसी, जुखाम, गले के संक्रमण आदि समस्याओ से निपटने मे किया जाता है।

इसके अलावा गहत की दाल से अनेक लजीज व्यंजन भी बनाए जाते है, जिनमे गहत का पराठा, गहत का पटुडी, गहत का गथवाणी, गहत का फाणु, गहत के डुबके आदि प्रमुख है। गहत के पौधो की जड़ो मे नाइट्रोजन फिक्सेशन का गुण भी पाया जाता है। गहत की औषधीय तथा न्यूट्रास्यूटिकल गुणो को देखते हुए विभिन्न शोध संस्थान के वैज्ञानिक गहत की उत्तम उत्पादन हेतु गहन वैज्ञानिक शोध द्वारा नये-नये प्रजातियो का विकास कर रहे है। उत्तराखंड राज्य के परिपेक्ष मे यदि गहत की खेती पारंपरिक, वैज्ञानिक तरीके तथा व्यवसाय के रूप मे किया जाए तो यह राज्य की आर्थिकी एवं स्वरोजगार की दिशा मे एक बेहतर कदम हो सकता है।

खबर शेयर करें: