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नहीं रहे उत्तराखंड के मूर्धन्य लोक कलाकार, हलुवा देवता के पसुवा हुकमदास

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ये है मुख्य बिंदु (Main Point)

  1. उत्तराखंड के मूर्धन्य लोक कलाकार का हुकमदास का निधन
  2. क्षेत्र के लोगों के कष्टों को स्वयं में हर लेते थे हुकमदास
  3. प्रसाद के रूप में बिच्छु घास से आशीर्वाद देते थे हुकमदास
  4. हुकमदास के लोककला के हर कोई दीवाने

उत्तराखंड के मूर्धन्य लोक कलाकार हुकमदास का निधन

उत्तराखंड के मूर्धन्य लोक कलाकारों में शुमार हमारी गाजणा पट्टी के रहने वाले प्रसिद्ध “हलवा देवता” के “पसुवा” हुकमदास जी अब हमारे बीच नहीं रहे। उत्तरकाशी की गाजणा पट्टी के सौड़, लोदाड़ा, दिखोली, चौड़ियाट और भेटियारा गांव में होने वाला प्रसिद्ध हलवा देवता मेले में हुकमदास जी पर हलुवा देवता अवतरित होते थे

क्षेत्र के लोगों के कष्टों को स्वयं में हर लेते थे हुकमदास

मेले के समापन पर वह क्षेत्र के लोगों के कष्टों को स्वयं में हर कर खुशहाली और सुख-समृद्धि के लिए गांव के हर घर से बनाकर लाया गया कई किलो हलुवा बिना हाथ लगाए केले के पत्तों पर खाते थे। जो हलुवा बनता था वह (आटे, दूध, घी, मक्खन से बनता था। यह दृश्य विश्वभर में आयोजित होने वाले मेले में अनूठा और दुर्लभ हुआ करता था।

प्रसाद के रूप में बिच्छु घास से आशीर्वाद देते थे हुकमदास

इसके अलावा लोगों को हलुवा देवता के प्रसाद के रूप में बिच्छु घास से आशीर्वाद प्राप्त करते थे। ढोल वादन और गायक के लोक कलाकार थे हुकमदास वह एक बहुत ही अच्छे ढोल वादक, रणसिंघा, मसकबिन जैसी यंत्रों में पारंगत कलाकार थे उत्तराखंड में ढोल के साथ विलुप्त होती गायन शैली उनमें कूट कूट कर भरी थी। संवेदना समूह के कई कार्यक्रमों में युवा लोक कलाकारों की टीम के बावजूद अकेले “हुकमदास” की कलाकारी भारी पड़ती थी।

हुकमदास के लोककला के हर कोई दीवाने

वह स्टेज पर आते थे तो अपनी लोककला से हर किसी का मन मोह लेते थे। यहां इस बात का जिक्र करना भी जरूरी है कि उत्तराखंड ही नहीं हुकमदास की कलाकारी के दीवाने सात समंदर पार भी थे। अमेरिका से आये फिरंगियों ने उनके सांनिध्य में उत्तराखंड की शान ढोल वादन को सीखा।

रिपोर्टर – दीपक नौटियाल (उत्तरकाशी)

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