21 December, 2024
इस कानून को 17 वर्ष बाद भी उत्तराखंड में लागू नहीं किया

वनाधिकार कानून के विभिन्न प्रावधानों पर हुई चर्चा

Almora News: संसद द्वारा 2006 में पारित कर दिया गया था। वनाधिकार कानून

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ये है मुख्य बिंदु (Headlines)

  1. वनाधिकार समिति के सदस्यों की एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित
  2. बाशिंदों के लिए यह कानून काफी महत्वपूर्ण
  3. 2012 में समस्त ग्राम पंचायतों में वनाधिकार कमेटियों का हुआ गठन
  4. ग्रामीणों द्वारा नहीं किए समिति के सम्मुख दावे प्रस्तुत
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वनाधिकार समिति के सदस्यों की एक दिवसीय कार्यशाला, आयोजित

अल्मोड़ा जिले के सोमेश्वर विधानसभा में इनाकोट में लोक प्रबंध विकास संस्था द्वारा ग्राम स्तरीय वनाधिकार समिति के सदस्यों की एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई। कार्यशाला में वनाधिकार कानून के विभिन्न प्रावधानों पर चर्चा की गई। इस अवसर पर संदर्भ व्यक्ति ईश्वर जोशी ने कहा कि अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी वन अधिकारों की मान्यता अधिनियम जिसे संक्षेप में वनाधिकार कानून कहा जाता है। संसद द्वारा 2006 में पारित कर दिया गया था।

बाशिंदों के लिए यह कानून काफी, महत्वपूर्ण

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में जहां 85% वन भूमि है। वहां के बाशिंदों के लिए यह कानून काफी महत्वपूर्ण है। इस कानून की महत्ता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है। कि इसके प्रावधानों में कहा गया है। कि औपनिवेशिक काल एवं स्वतंत्र भारत में राज्य वनों को समेकित करते समय वनवासियों के पैतृक भूमि पर वन अधिकारों तथा उनके निवास को मान्यता न देने से उनके साथ ऐतिहासिक अन्याय हुआ है। उनके अधिकारों की बहाली के लिए यह कानून लाया गया है।

2012 में समस्त ग्राम पंचायतों में वनाधिकार कमेटियों का हुआ, गठन

यह कानून व्यक्तिगत एवं सामूहिक वनाधिकार की बात करता है।स्कूल, अस्पताल, आंगनबाड़ी, सामुदायिक भवन, पेयजल , सिंचाई सहित 13 कार्य हेतु एक हेक्टेयर देने तथा इसके लिए 75 पेड़ काटने का अधिकार दिया है। इस अधिनियम के लागू होने के 17 वर्ष बाद भी उत्तराखंड में इसे प्रभावी तरीके से लागू नहीं किया जा सका है। कार्यशाला में मौजूद सदस्यों ने बताया कि इस कानून की जानकारी तो दूर यह भी मालूम नहीं है। कि वह समिति के सदस्य हैं। यहां उल्लेखनीय है। कि उच्च न्यायालय के आदेश के बाद 2012 में समस्त ग्राम पंचायतों में वनाधिकार कमेटियों का गठन कर दिया गया है।

ग्रामीणों द्वारा नहीं किए, समिति के सम्मुख दावे प्रस्तुत

लेकिन सदस्यों को वन अधिकार कानून की कोई जानकारी नहीं दी गई। जानकारी के अभाव में ग्रामीणों द्वारा समिति के सम्मुख दावे प्रस्तुत नहीं किए गए अभ्यारण से प्रभावित 17 गांव द्वारा सामूहिक दावे डाले गए थे। जो खंड स्तरीय समिति में लंबित हैं। इन दावों पर आज तक निर्णय नहीं लिया गया है। बैठक में वनाधिकार कानून को प्रभावी तरीके से लागू करने के साथ ही लंबित वादों के निस्तारण की मांग की गई। कार्यशाला में पूरन सिंह, जोगा सिंह, लाल सिंह, जगदीश चंद्र तिवारी ,बालम , दीप्ति भोजक,कमला देवी सहित अन्य संस्था के सदस्यों ने प्रतिभाग किया।

रिपोर्टर-दिनकर प्रकाश जोशी (सोमेश्वर)

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