चौखुटिया (अल्मोड़ा) में “ऑपरेशन स्वास्थ्य” आंदोलन आठवें दिन भी जारी — अस्पताल सुधरें या संघर्ष बढ़े?
उत्तराखंड के अल्मोड़ा ज़िले में चौखुटिया क्षेत्र के निवासी “ऑपरेशन स्वास्थ्य आंदोलन” के तहत स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार की मांग को लेकर आठवें दिन भी प्रदर्शन कर रहे हैं। लिखित आश्वासन मिलने के बावजूद आंदोलनकारियों का कहना है कि जब तक जमीन पर काम नहीं दिखेगा, वे पीछे नहीं हटेंगे। गिरफ्तारियों या दमन की कोई खबर नहीं है, लेकिन एक आंदोलनकारी ने खुद को गोली मारने की चेतावनी दी, जिससे प्रशासन सख्ती बरतने को तैयार है।
घटना-क्रम और ताज़ा हालात
- आंदोलन का नाम — “ऑपरेशन स्वास्थ्य” (Operation Swasthya) — स्थानीय लोगों ने इसे स्वास्थ्य सुधार की आवाज़ बनाने के लिए अपनाया है।
- यह आंदोलन लंबित स्वास्थ्य सुविधाओं, चिकित्सक कमी, उपकरण और इंफ्रास्ट्रक्चर की अनुपस्थिति के खिलाफ है।
- कई आंदोलनकारी भूख हड़ताल पर हैं। कुछ ने मौन सत्याग्रह (silent protest) किया है, और कुछ ने क्रमिक अनशन पर जाना शुरू किया है।
- एक प्रमुख घटना — हीरा सिंह पटवाल नामक एक आंदोलनकारी ने कहा है कि यदि उनकी मांगों पर ठोस कार्रवाई नहीं हुई तो वे खुद को गोली मार लेंगे। इस धमकी के बाद पुलिस ने आंदोलन स्थल पर निगाह बढ़ा दी है।
- कुछ आंदोलनकर्ताओं की सेहत बिगड़ी है — आपात मेडिकल ध्यान दिया गया। आंदोलन के नेता भुवन कठायत की स्थिति नाजुक हुई और उन्हें अन्य अस्पताल भेजा गया।
- प्रशासन की प्रतिक्रिया — जिला स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा कि मेडिकल डायरेक्टर ने क्षेत्र का दौरा किया और विशेषज्ञ डॉक्टरों की तैनाती व CHC सुधार हेतु कदम उठाने के आदेश दिए गए। परंतु आंदोलनकारी अभी आश्वस्त नहीं हैं।
- जनता की सहमति — स्थानीय लोग, परिवार और समर्थक आंदोलन में शामिल हो रहे हैं, नारेबाजी कर रहे हैं और दबाव बना रहे हैं।
1. क्यों यह आंदोलन उठा?
पहाड़ी क्षेत्रों में स्वास्थ्य संसाधन हमेशा सीमित रहे हैं। CHC (Community Health Centre) या PHC का दर्जा होने के बावजूद अक्सर वहाँ विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं होते, जरूरी उपकरण नहीं मिलते या दवाइयाँ कम होती हैं। लोग बुनियादी जाँच या इलाज के लिए बाहर भेजे जाते हैं — खर्च, समय और जोखिम बढ़ जाता है।
जब लंबे समय तक वादे सिर्फ कागज पर रहते हैं — लोग असहाय महसूस करते हैं। यही दबाव कभी कभी आंदोलन को जन्म देता है। इस मामले में, स्थानीय नेतृत्व (सेवानिवृत्त सैनिकों) ने आवाज़ उठाई है, जिससे नागरिक संघर्ष को धार मिली है।
2. आंदोलन के स्वरूप और रणनीति
वे केवल नाराज़गी जताने तक सीमित नहीं हैं:
- भूख हड़ताल / अनशन — शरीर को सबसे पहले हमलावर बनाकर ध्यान खींचना।
- मौन सत्याग्रह / क्रमिक अनशन — प्रतीकात्मक तरीके, शांत दबाव।
- उग्र चेतावनियाँ — जैसे आत्महत्या या गोली मारने की धमकी — संवेदनशील और खतरनाक संकेत।
- सामुदायिक समर्थन — स्थानीय लोगों का समर्थन, संवाद, मीडिया कवरेज बढ़ाना।
- प्रशासन से संवाद — वादे लेना, लिखित आश्वासन, निदेशक की यात्रा आदि।
3. प्रमुख चुनौतियाँ / रिस्क
- स्वास्थ्य जोखिम: भूख हड़ताल करने वालों की हालत बुरी हो सकती है।
- अशांति की संभावना: चेतावनियाँ अत्यधिक तनाव उत्पन्न कर सकती हैं, दमन और संघर्ष का संकट बढ़ सकती है।
- वादा बनाम क्रिया: प्रशासन अक्सर लिखित वादे करता है, लेकिन धरातल पर धीमी कामयाबी।
- स्थिरता बनाम अस्थिरता: अगर आंदोलन ज़्यादा लंबा चला, तो आर्थिक, सामाजिक असर होगा।
- मानव अधिकार और संवेदनशीलता: कोई भी कदम उठाते समय मानवीय गरिमा और नैतिक दायित्व ध्यान में रखना आवश्यक।
4. आगे की संभावित राहें
- तत्काल — स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की तैनाती, उपकरण लाना, चेकअप कैंप्स, आधुनिक सुविधाएँ।
- मध्यावधि — CHC को उन्नत दर्जा देना (बेड संख्या बढ़ाना, विभाग विस्तार)।
- दीर्घकाल — हेल्थ सिस्टम का पुनर्गठन: अंतरालों के लिए दूरस्थ टेलीमेडिसिन, स्वास्थ्य कर्मियों को आकर्षित करना, नियोजन।
- समाज स्तर पर — निगरानी कमीशन, जनता रिपोर्ट, मीडिया सतर्कता, स्थानीय स्वास्थ्य समितियाँ।
- चेतावनी मार्ग — आंदोलन से पहले संवाद-राहें (RTI, जनहित याचिका) उपयोग करना।
निष्कर्ष
“ऑपरेशन स्वास्थ्य आंदोलन” सिर्फ सरकार और विभाग को झकझोरने की लड़ाई नहीं है — यह उस मूल सवाल को छूता है कि क्या हर आदमी, चाहे पर्वतीय इलाका हो या आबादी वाला क्षेत्र, स्वास्थ्य की बुनियादी हक़ रखता है।
यह आंदोलन सफल हो जाए — या खामोशी में दबा दिया जाए — दोनों रास्तों में संदेश है: जनता को नजरअंदाज करना आसान नहीं होगा। लेकिन समाधान तभी टिकेगा जब वादे साथ में कार्रवाई हों — कल का स्वास्थ्य सिर्फ दावे और घोषणाओं से नहीं बनता।
खुला सवाल: इस आंदोलन से तुम्हें क्या सीख मिलती है? अगर तुम्हारे इलाके में ऐसी स्थिति होती — तुम कौन सी रणनीति चुनते?