हिमालयी झरने सूख रहे हैं, संकट में उत्तराखंड का ग्रामीण जीवन
उत्तराखंड और पूरे हिमालयी क्षेत्र में झरनों (Springs) का सूखना अब एक बड़ा संकट बन चुका है। हाल ही में विशेषज्ञों द्वारा किए गए अध्ययन में सामने आया है कि पिछले कुछ वर्षों में हजारों छोटे-बड़े प्राकृतिक झरनों का जलस्तर गिर रहा है और कई झरने पूरी तरह सूख चुके हैं।
क्यों है चिंता की बात?
- पहाड़ों में ग्रामीण जीवन का सबसे बड़ा सहारा यही झरने हैं।
- अनुमान है कि लगभग 50 मिलियन लोग इन झरनों पर निर्भर हैं।
- इनका सूखना सीधे तौर पर पीने के पानी, खेती और पशुपालन पर असर डाल रहा है।
विशेषज्ञों की राय
जल विशेषज्ञों का कहना है कि झरनों के सूखने की बड़ी वजह है:
- अंधाधुंध वनों की कटाई
- तेज़ी से बदलता मौसम और बारिश के पैटर्न में बदलाव
- भूमि का अत्यधिक दोहन और अवैज्ञानिक कंस्ट्रक्शन
क्या उपाय सुझाए गए?
- सामुदायिक स्तर पर झरनों का पुनर्भरण (Spring Recharge) करने की योजना
- वर्षा जल संरक्षण और तालाबों को पुनर्जीवित करना
- हर गांव में जल प्रबंधन समितियां बनाना
- सरकार की जल जीवन मिशन जैसी योजनाओं को झरनों से जोड़ना
जनता पर असर
आज भी कई गांवों में महिलाएं और बच्चे रोज़ाना कई किलोमीटर चलकर पानी लाने को मजबूर हैं। अगर यह संकट नहीं सुलझा तो आने वाले समय में पहाड़ों में पलायन और बढ़ सकता है।
निष्कर्ष
हिमालयी झरनों का संरक्षण सिर्फ पर्यावरण का नहीं बल्कि उत्तराखंड की संस्कृति और अस्तित्व का सवाल है। विशेषज्ञ और स्थानीय लोग मानते हैं कि अगर अभी ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले 10–15 सालों में जल संकट और गहराएगा।